उनके परिजनों को यह लग रहा था कि पक्षाघात के मेरा मानसिक संतुलन भी बिगड़ गया है। उनके परिजनों को यह लग रहा था कि पक्षाघात के मेरा मानसिक संतुलन भी बिगड़ गया है।
वो कि वक़्त कब और कैसा करवट लेगा आप नहीं जान सकते हो। वो कि वक़्त कब और कैसा करवट लेगा आप नहीं जान सकते हो।
लेखक : राजगुरू द. आगरकर अनुवाद : आ. चारुमति रामदास लेखक : राजगुरू द. आगरकर अनुवाद : आ. चारुमति रामदास
उसके भीतर की कवयित्री जागृत हो गयी और उसकी स्वयं की लिखी पंक्तियाँ उसके जेहन में गूंज ग उसके भीतर की कवयित्री जागृत हो गयी और उसकी स्वयं की लिखी पंक्तियाँ उसके जेहन में...
मेरे बेटे अनुराग का पहला जन्मदिन और सौ से भी ज्यादा मेहमान आये। कुछ मेरे मामाजी के परिव मेरे बेटे अनुराग का पहला जन्मदिन और सौ से भी ज्यादा मेहमान आये। कुछ मेरे मामाजी ...
पूजा ने पहली बार रंग-पिचकारी-गुब्बारे लेकर सबके साथ रंग दिया पापा को, अपने मनमोहक रंगों से। पूजा ने पहली बार रंग-पिचकारी-गुब्बारे लेकर सबके साथ रंग दिया पापा को, अपने मनमोह...